तवांग
मुझे याद है कि स्कूल की किताबों में अरुणाचल प्रदेश का उल्लेख एक दो पन्नों तक ही सिमित था | साल गुज़रते गए, भारत के कई अद्भुत स्थानों की यात्रा का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ | पूर्वोत्तर भारत में सिक्किम, मेघालय और असम की सुंदरता को आज भी आँखें मूंदें याद करूँ तो मुस्कान आ जाती है | अरुणाचल के बारे में विचार आया तो लगा कि शायद मुश्किल हो सकता है क्योंकि पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं थी | इस दुविधा से मुक्ति पाने हेतु मैंने अरुणाचल प्रदेश की यात्रा का कार्यक्रम बनाया | यानी हाथ कंगन को आरसी क्या!
गुवाहाटी से नमेरी के रास्ते में ब्रह्मपुत्र नदी और महामृत्युंजय मंदिर में महादेव का आशीर्वाद लेते हुए हमने अपनी यात्रा का श्री गणेश किया | नमेरी असम और अरुणाचल की सीमा पर एक नेशनल पार्क है जहाँ नाना प्रकार के पशु पक्षी पाए जाते हैं | प्रात: काल नमेरी में टहलते हुए हम गाँव वासियों से मिले और उनके रहन सहन के विषय में पता चला | पुरुष खेत और स्त्रियाँ घर के काम काज में व्यस्त होते हुए भी हमारी मेज़बानी का ख्याल रख रहे थे | तक़रीबन हर घर में हैंडलूम मशीन को देखा | कपड़ों पर कई बारिक डिज़ाइन भी यह कलाकार स्वयं बनाते हैं | उनकी बुनाई की कला क्षमता प्रशंशनीय है|
नमेरी के समीप जिआ भराली नदी बहती है जहाँ हमारा राफ्टिंग का कार्यक्रम तय किया गया | सूरज का बादलों से और धरती पर हमारी राफ्टिंग बोट का जल से अठखेलियों का सिलसिला हमारी यात्रा का शुभारंभ संकेत था | शीतल जल की हर बौछार से हम वक्त को पीछे ही ले चले जहाँ कोई संकोच की गुंजाइश नहीं थी क्यूँकि हम नौ दोस्त उत्साहित बच्चे हो गए थे|
नमेरी से निकले और पूर्वोत्तर हिमालय से गुज़रते हुए शाम तक बोमडिला (8000 ft) पहुँचे | बोमडिला अरुणाचल का महत्वपूर्ण शहर है जहाँ से ऊँचे इलाकों पर जाने हेतु तमाम रास्ते शुरू होते हैं | बोमडिला मॉनेस्ट्री में रात बिताने पश्चात ठंड में ठिठुरते हुए हम तवांग की ओर रवाना हुए | किसी मॉनेस्ट्री गेस्ट हाउस में रहने का यह मेरा पहला अनुभव था | हर इंतज़ाम दुरुस्त था – साफ़ कमरे, स्वादिष्ट भोजन और मेहनती कर्मचारी लंबे सफ़र को आसान बना देते हैं|
‘से ला’ (13700 ft, तिब्बती में ‘ला’ का अर्थ high altitude pass होता है) में बादल छाए हुए थे | जबरदस्त ठंड के साथ बारिश होने के आसार भी थे | ईश्वर की कृपा से बारिश हुई नहीं और अगर हो जाती तो शायद भीगे हुए ऊनी कपड़ों को हमारे शरीर की अंशमात्र गर्मी की ज्यादा जरूरत होती | बहरहाल, पृथ्वी के इस खूबसूरत अनजान कोने में खुद को मौजूद देख मैं धन्य हुआ| पहाड़ों ने अपने बीच एक विशाल झील को थामा हुआ था मानो अपनी सुन्दरता को निहारने वास्ते उन्हें दर्पण मिल गया हो| हवा के झोंकों से झील में कंपन होती तो नीले गगन और मचलते बादलों के प्रतिबिंब पर क्षण भर को विराम लग जाता | अचल पर्वत भी अपनी छवि ढूंढ़ते हुए कुछ झुके-झुके से प्रतीत होते थे | इस नज़ारे को मैंने कैमरे में क़ैद तो कर लिया पर मेरी इंद्रियों ने जो महसूस किया वो कदापि किसी चित्र में समा नहीं सकता | पंचतत्व अपनी शक्ति के परम रूप से हमें अनुग्रहित कर रहे थे| जब कभी कोई इन्हे अपनाने की नि:स्वार्थ कोशिश करता है प्रकृति उसे निराश नहीं करती|
कुछ देर बाद हमारी टोली जांग (या नूरानांग) झरने पर पहुँची | 100 mts ऊँचा झरना चट्टानों से भिड़ता और सतह से टकराता हुआ तवांग चू नदी में प्रवाहित हो रहा था | यात्रा के कुछ यादगार पल बटोरे और तवांग की ओर अग्रसर हुए | आखिरकार शाम 6:30 बजे हम तवांग (10000 ft) पहुँचे | थके राही को रैन बसेरा अमृत समान होता है | हमारा निवास स्थान था भी अपने ही घर जैसा! चाय वैसे ही अच्छी लगती है पर थकान और ठंड के हाल में मिल जाए तो क्या कहने! गर्मियों में पूर्वोत्तर भारत में सूर्योदय का समय 4:30 am है | इसीलिए जल्दी ही शुभ रात्रि हुई और जब तक नींद से जागे सूरज महाराज सर पर ही आ चुके थे | सुबह एहसास हुआ कि हमारा घर एक अत्यंत सुंदर जगह पर बना हुआ है | आँगन से तकरीबन पूरा तवांग दिखाई देता था…चारों तरफ पर्वतों और हरे भरे पेड़ों के बीच से मकानों के छज्जों पर सुबह की धूप कलाकारी कर रही थी|
आज तवांग में समय अपनी धीमी गति से जीवन को ठहराव प्रदान कर रहा है पर यह युद्ध विनाश का गवाह है और भारतीय इतिहास में इसका उल्लेखनीय योगदान है | 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान चीनी सेना ने हिमालय पार करते हुए यहीं से भारतीय धरती पर कब्ज़ा करने की शुरुआत करी थी | मैं युद्ध का इस लेख में ज़िक्र नहीं करना चाहता पर इतना ज़रूर कहूँगा कि भारतीय सेना के वीर जवानों ने तमाम मुश्किलों के बावजूद अपने शौर्य और कर्तव्य का सर्वोच्च प्रमाण प्रस्तुत किया था | तवांग उनके बलिदान को आज भी याद करता है | शहीद सैनिकों के सम्मान में कई श्रद्धा स्मारक उनकी वीर गाथा को जीवित रखते हैं | आम जनता से मिलकर हमारे सैनिक हमेशा खुश होते हैं | मैंने उनमें कभी भी मनोबल और उत्साह की कमी नहीं देखी है | उदहारण के लिए, नमेरी में एक 10-12 साल की लड़की से मैंने पूछा कि बड़ी होके क्या काम करना चाहती हो? उसने तुरंत जवाब दिया “इंडियन आर्मी ज्वाइन करूँगी”! अपने सपने को परिपूर्ण करने के लिए वो मेहनत भी कर रही है | पढ़ाई और घर के काम के साथ रोज़ाना 5 km दौड़ना और वर्जिश उसके परिश्रम का प्रमाण हैं | जिस दिन उसकी मासूम आँखों में बसे सपने साकार होंगे उस दिन देश रक्षा के लिए उन्ही आँखों से दुश्मन के लिए अंगार बरसेंगे | कोई यूँ ही नहीं फ़ौलाद बन जाता!
तवांग से 40 kms आगे सेना का अत्यंत महत्वपूर्ण रणनीति केंद्र है – बुम ला (15200 ft) | 1962 में चीन ने भारत पर यहाँ से आक्रमण किया था | भारत और चीन के सेना अफ़सर अक्सर यहाँ flag meetings के लिए मिलते हैं | सफ़र की ऊँचाई बढ़ती गई और प्रकृति अपने आंचल से धीरे-धीरे हर मोड़ पर नए रत्न हमारी झोली में भेंट करती रही | नीले आकाश तले जहाँ तक नज़र गई केवल बर्फिले पहाड़ अपनी सफ़ेद मखमली पोशाक में रौबदार व्यक्तित्व का परिचायक थे | रात की ठंड में जमी हुईं कई सारी झीलें सूरज की गर्मी से बंधन-मुक्त होने की प्रतीक्षा में थीं | बुम ला पर कुदरत का मिजाज़ कुछ और ज्यादा निखर कर सामने आया | खुला नीला आसमान, ठंडी हवा में भ्रमण करते रुई के ढेर जैसे बादल, अंतहीन पर्वतमाला, ताज़ा बर्फ की परत पर सूर्य की किरणें अपनी कहानी अंकित कर रही थीं | ऐसी सुहानी धूप से बर्फ़ के कण हीरे जैसे चमकते हुए इतरा रहे थे | पर्यटकों के छोटे समूह बनाकर सेना के अफ़सर भारत चीन सीमा तक ले गए | दोनो देशों के बीच केवल 25 mts का फासला था! इंसान ने ज़मीन पर सीमा तो बना ली पर प्रकृति स्नेह को कैसे बाँटेगा? तवांग से एक और दिलचस्प जगह जाया जा सकता है – चगज़ाम सस्पेंशन ब्रिज। यह तवांग चू नदी पर स्थापित करीब 600 वर्ष पुराना पुल है। नदी अपनी तेज़ रफ़्तार से बढ़ती रही पर हमें जल्दी नहीं थी। यहाँ के एकांत और हरियाली का लुत्फ शायद और कहाँ मिले!
तवांग मनमोहक और पराकर्मी है तो बौद्ध धर्म के प्रति निष्ठा में भी निपुण है | यहाँ कई पुरानी और नई बौद्ध मॉनेस्ट्रीज हैं जिसमे की मुख्य है तवांग मॉनेस्ट्री | यह भारत की सब से बड़ी मॉनेस्ट्री है जिसकी स्थापना 1680 में हुई थी | वैसे आप दिन में कभी भी यहाँ दर्शन के लिए पधार सकते हैं पर सुबह 5 बजे बाल बौद्ध भिक्षुगण की प्रार्थना के समय का वातावरण मन को शांति प्रदान करता है | गुरु-शिष्य परम्परा के सूत्र में बंधे सभी भिक्षु अनुशासित ढंग से मंत्र उच्चारण में मग्न थे | विश्राम समय में उन्हें हँसी-मज़ाक करते और क्रिकेट-फुटबॉल खेलते भी देखा | तवांग और बोमडिला मॉनेस्ट्री उन्हें धार्मिक ग्रंथों के अलावा विज्ञान और गणित में भी शिक्षित करती है | हमें बताया गया कि कुछ बच्चे इंजीनियर और डॉक्टर भी बन चुके हैं|
तवांग की यात्रा अत्यंत सुगम एवम रोमांचक रही | हमारी सफल यात्रा में Border Road Organisation (BRO) द्वारा निर्मित बेहतरीन सड़कों की विशेष भूमिका रही है | तवांग से विदाई ली क्यूंकि दिरांग (5000 ft) का निमंत्रण था | यह कामेंग ज़िले में एक प्राचीन और प्रकृति की गोद में बसा छोटा गाँव है | कामेंग नदी इसकी प्राणधारा है | ‘दिरांग जोंग’ इस गाँव का लोकप्रिय क़स्बा है जहाँ अरुणाचल की सब से प्राचीन दिरांग मॉनेस्ट्री स्थित है जिसके दर्शन पश्चात हमारी यात्रा का अरुणाचल से प्रस्थान हुआ | तवांग में बादलों संग रहकर हम धरती पर उतर आए और असम में चाय के बागों में लुप्त हो लिए|
किताबों से निकलकर अरुणाचल प्रदेश को प्रत्यक्ष रूप में देख कर मैं संतुष्ट हूँ | इसकी कहानी प्रकृति, निष्ठा और शौर्य का सुलभ मिश्रण है जो मुझे हमेशा याद रहेगी | घर लौटते हुए एक विचार आया कि जब मासूमियत अपना इज़हार खुद ही कर दे तब कठोरता भी मुस्करा देती है | तो क्या इंसान ज़मीन के लिए लड़ाई करना छोड़ कुदरत के करिश्मों की सुरक्षा में हाथ आगे नहीं ला सकता, क्या ऐसा नहीं सोच सकता कि प्रकृति सौंदर्य के कोमल धरातल पर प्रहार से धरती माँ का ह्रदय विचलित होता होगा | मैं जानता हूँ कि यह कठिन है पर आशा के पँख असीम होते हैं…
विवेक, बहुत ही बढ़िया फोटोग्राफी और उसका वर्णन. समुचित शब्द में तवांग के सभी जगह का अच्छा विवरण, टिप्पणी कि है जैसा लगता है कि हम स्वयं वहा हैं. विवेक, आपकी प्रतिभाशक्ति अलौकिक है. बहुत ही बढ़िया और सराहना जनक. 👌👌👌👌👌👌👌
विवेकजी ….छायाचित्रों के बारे में क्या कहें, अविस्मरणीय |और संपूर्ण सैर का विश्लेषण लाजवाब ❤️
Vivek, you are a naturalist, a Genius with words and Camera. Thank you from the bottom of my heart fir taking us to such amazing places in India while serving us with all the beautiful scenes and scenery of our Mother India. God Bless you. Kerp rocking brother.
Rajan Patel
Photography and your writing….. both are exquisite,Vivek!
विवेक के छायाचित्रण और लेखन में क्या अधिक प्रभावशाली है, इसका चुनाव बहुत कठिन है। उसकी छायाचित्रण प्रतिभा से तो मैं परिचित था परन्तु उसका लेखन रेखाचित्र सा बना सकता है यह मैंने अभी जाना है। ढेर सारी बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं आगे के लिए। विवेक की इस विशेष प्रतिभा से परिचय कराने के लिए डॉक्टर गर्ग का अनेकोंनेक धन्यवाद।
विवेक की फोटोग्राफी या फिर अद्भुत अरुणाचल के मनमोहक द्रष्यों का सुंदर विवरण में से एक का चुनाव करने मे मैं असमर्थ हूं।
अरुणाचल में बौद्ध भिक्षुओं, मन्दिरों एवम बौद्ध स्थापत्य कला का सुंदर रंगारंग चित्रण मैने तो पहली बार देखा है। लेकिन फिर बुमला में 15200 फिट की उंचाई से पृकति की सभी कलाओं का विवरण भी तो मन को लुभा रहा है।
विवेक एक तरह से बहुत भाग्यशाली भी है। इंजीनियरिंग कॉलेज के दौरान से ही विवेक के 6-7 मित्रो की टोली पिछले ~३० वर्षों से कई यात्राएं कर चुकी हैं। अपने मित्रों का साथ ऐसी सुंदर यात्राओं पर जाने का मजा ही कुछ और है।
अब मुझे भी अरुणाचल जाना है।
विवेक, अब तुम्हारे लिखने की पद्धति से मैं बहुत प्रभावित हो गया हूं। इतनी शुद्ध और सरल भाषा का प्रयोग प्राय: कम दिखाई देता हैं।
तुमने जगह जगह जा कर उस जगह की सुंदरता का जो वर्णन किया हैं, वह सचमुच बहुत ही लुभावना होता हैं।
साथ में जो तस्वीरें होती हैं, वो भी तुम्हारे लिखने के अंदाज को चार चांद लगा देती हैं। ऐसे ही लिखते रहो और अपने देश को सुंदरता को बढ़ावा देते रहो, प्रसार करते रहो। 🙏🙏👌👌🇮🇳🇮🇳
Beautiful pictures along with beautiful story
वाह विवेक, लेख पढ़कर बहुत आनंद महसूस किया। जिस उल्लेख और विस्तारित रूप से आपने यात्रा के हर क्षण का वर्णन किया, उसकी जितनी भी सराहना की जाय, कम लगेगा। मुझे तो ऐसा लग रहा था कि मानो मैं स्वयं अपने ही आंखों से नज़ारा देख रहा हूं। पढ़के मज़ा आ गया 😊
This is a treat for the senses, loved the colours – both the natural muted ones and the bright colours of the man made structures. I may just cut, copy and paste this trip. Thank you for the thoughtful share of your iternary. More power to you and your tribe.
कहते हैं कि एक चित्र बहुत कुछ बोल सकता है, परंतु जब शब्द उन चित्रों में उंबरते हैं तो, ऐसा लगा है कि उस चित्रकार के दिल में बसी बात उन चित्रों में दिख ने लगती है..बधाई हो बिबेव बाबू