Panwali Kantha

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पंवाली कांठा

पिछले दो सालों में सम्पूर्ण विश्व ने कठिन परिस्थितियों का सामना किया है। इस दौरान यात्रा के विषय में सोचना भी एक स्वप्न था। मैंने अनेक बार हिमालय की वादियों की कल्पना मात्र से ही मन बहला लिया। जैसे जैसे माहौल ठीक होने लगा अपने स्वप्न को अंजाम देने कि हिम्मत ने भी दस्तक देनी शुरू कर दी।

मेरी हार्दिक इच्छा थी कि हिमालय और विशेषकर तारों का अद्भुत आनंद जो मैंने अपनी पिछली यात्राओं में लिया उसे मेरी पत्नी नीरजा भी अनुभव करे। मेरे मित्र धीरेंद्र और मयूरी की जोड़ी भी राज़ी हो गयी। बस फिर क्या था…अपने विश्वशनीय Whitemagic Adventures से संपर्क हुआ और अक्टूबर में उत्तराखंड के पंवाली कांठा ट्रेक का कार्यक्रम बन गया। हमारा सफ़र कुछ ऐसे गुज़रा…

पहले दिन हम ऋषिकेश से प्रातः 10:30 बजे घनसाली के लिए रवाना हुए। 80 kms का यह सफ़र अत्यंत मनोरम स्थानों से सजा हुआ है। भागीरथी नदी पर बना भारत का सब से ऊँचा तहरी बांध रास्ते में पड़ा। इस बांध के कारण तहरी झील बन गई है जो एशिया की विशाल मानव निर्मित झीलों में से एक है। इस झील को निहारते हुए वक़्त कब हमें घनसाली ले आया, पता ही नहीं चला। घनसाली से कुछ पहले हमारी मुलाकात ट्रेक लीडर पवन और दो अन्य ट्रेकर्स शुचि और स्मिति से हुई।

घनसाली उत्तराखंड के तहरी गढ़वाल जनपद में स्थित एक छोटा सा शहर है। विश्राम पश्चात् शाम को पवन ने हमें ट्रेक संबंधित जानकारी और सावधानियों से अवगत कराया। उनका प्रोत्साहन स्वर यही स्पष्ट कर रहा था कि ट्रेक आसान हो या कठिन, मुश्किलें तो आ सकती हैं पर एक दूसरे का ख्याल रखते हुए हम मंज़िल तक पहुँच जाएँगे। यह कोई प्रतिस्पर्धा नहीं जहाँ हार जीत का दांव हो। जब तक आखिरी व्यक्ति ट्रेक समाप्त ना कर ले, समझिए कोई जीता ही नहीं।

दूसरे दिन सुबह 8:15 बजे हम गाड़ी से घुत्तू की तरफ निकले जहाँ से हमारी ट्रेक की चढ़ाई शुरू होनी थी। घुत्तू खुली हवा, पहाड़ियों और हरियाली से घिरा अपने लुप्त अस्तित्व में सुखद वातावरण का उदाहरण है । इसकी शांति में हमारी गाड़ी की आवाज़ से कुछ विराम लगा तो ज़रूर पर कोई नाराज़गी नहीं दिखाई। बच्चे अपने स्कूल की तरफ़ चलते गए, खेत पर धान की कटाई होती रही, चाय की दुकानों में बैठे सज्जन अपनी बातों में मशग़ूल रहे, बादल हवा के साथ नीले गगन में मतवाले रहे, सूरज शनैः शनैः धरती के दूसरे छोर से मिलन के रास्ते बढ़ता रहा और पशु पक्षी अपनी धुन में मग्न रहे। किसी को इस बात की फ़िक्र नहीं थी कि कुछ शहरी उनके जीवन में हस्तक्षेप करने तो नहीं आए। शायद जब मन बेसुध अभिलाषा से मुक्त होता है तब इंसान सुरक्षित ही महसूस करता है। थोड़ी दूर पहुँचे तो Whitemagic का दस्ता हमारा इंतज़ार कर रहा था। यश, नामग्याल, अनूप और हमारे पेट पूजा के साधन सहित रमेश भाई। फटाफट सामान खच्चरों पर लादा गया और 10:30 बजे हमने महादेव का आशिर्वाद लेते हुए ट्रेक का श्री गणेश किया।

Ghuttu to Gwan Manda. Pictures by all group members

ट्रेक का रास्ता जंगल के पत्थर और मिट्टी का समावेश था। सुगम नहीं तो नामुमकिन भी नहीं। ऐसे में हमारे गाईड रामप्रसाद भट्ट का साथ दिलचस्प रहा। दुबले पतले, साधारण लिबास, ऊनी टोपी और चेहरे पर सदाबहार मुस्कान। इनकी बस यही पहचान थी जो पूरे सफ़र में कायम रही। जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गए रामप्रसाद जी ने रामायण और महाभारत की अनेक कहानियों से हम सब को बांधे रखा। बीच बीच में अपने चुटकुलों का तड़का भी देते रहे।

यूँ ही बातों बातों में 4 kms चलते दोपहर 2:30 बजे हम कैंप 1 ग्वान मांडा (ऊँचाई 2610 mts) पहुँच गए। थकान सहित खुशी भी थी कि सभी साथी सकुशल पहले पड़ाव पर थे। यहाँ Whitemagic के नवांग से अरसे बाद मुलाक़ात हुई। पवन और नवांग संग कुछ पिछले ट्रेक की यादें ताज़ा हो गईं। ग्वान मांडा से घुत्तू घाटी साफ नज़र आती थी। मुझे सूर्यास्त पश्चात तारों की छत की प्रतिक्षा थी। सूर्यदेव अपने विश्राम कक्ष की ओर बढ़ रहे थे पर बादलों और धुंध ने आसमान अपने आगोश में लिया हुआ था। सूर्य, बादल और धुंध की कश्मकश ने एक मनोरम दृश्य प्रस्तुत किया। ऐसा प्रतित होता था जैसे छिप छिप कर सूर्य मुझे शुभरात्री कह रहे हों।

रात्रि भोजन के वक्त आसमान साफ नहीं था पर करीब 7:30 बजे तारों ने अपना आँचल बिछाना शुरू किया और हम सब आवाक रह गए। इस ट्रेक में Andromeda Galaxy और कुछ Constellations को अंकित करना मेरा उद्देश्य था। Stellarium app की मदद से कुछ देर में Andromeda का अनुमान हो गया। आँखों या दूरबीन से यह साफ नज़र नहीं आती पर धुंधला गोलाकार बादल सा प्रतीत होता है। अपनी खुशी मैं सभी साथियों के साथ बांटने को उत्सुक था। सब ने इस 2.5 million light years दूर galaxy के दर्शन का आनंद लिया। अगले एक दो घंटे तक हम Constellations की पहचान में व्यस्त रहे।

तीसरे दिन 10 kms का ट्रेक था। जब हमारे कदम सूखी पत्तियों पर पड़ते तब हल्की सरसराहट होती जो जंगल की शांति से छेड़खानी कर रही थी। सर्द मौसम में पेड़ों के बीच से रोशनी की तपिश हमारी राह को मनोरम बना रही थी। घने जंगलों की खुशबू शरीर के कण कण में अपनी पहचान स्थापित कर रही थी। जंगलों से मानव जाति का अस्तित्व सुरक्षित है और मानव ही इसे अस्तव्यस्त कर रहा है। आधुनिक काल की प्रगति का यह एक भारी दुष्परिणाम है।

12 बजे हम पोभागी होते हुए दोफंद पहुँचे जहाँ हम ने भोजन किया। 4 kms और चलते हुए हम 3 बजे कैंप 2 बिजौला (ऊँचाई 3260 mts) पहुँचे। कोई चाहे कितना भी तंदुरुस्त और फौलादी क्यों ना हो मंज़िल पर पहुँच कर अपनी थकान महसूस करते हुए सुकून की सांस लेता ही है। एक अनकही खुशी का एहसास होता है कि मेहनत सफल हुई और अब थोड़ा आराम तो बनता है साहब!

बिजौला की हरियाली, नीले गगन में लहराते बादल, ताज़ा हवा, हल्की धूप, धुंध में लिपटी वादियाँ…किसी कलाकार का कमाल लगा। हम अपनी रोज़ाना की ज़िंदगी से कोसों दूर चले आए थे जहाँ हमारी कल्पना पर कोई अंकुश नहीं था। मुझे इंतज़ार था सूर्यास्त का जिसके बाद सितारे फिर मुझे मंत्रमुग्ध कर देते। कुछ देर बाद Milky Way Galaxy साफ़ दिखाई दी और धीरे धीरे तारे टिमटिमाने लगे…क्या ख़ूबसूरत नज़ारा था।

Gwan Manda to Bijola. Pictures by all group members

अगले दिन पंवाली कांठा (ऊँचाई 3650 mts) की चढ़ाई के लिए हम सुबह 4 बजे निकल पड़े। हिमालय पर सूर्योदय अभिषेक देखने हेतु यह मेहनत तो निश्चित है। बिजौला से पंवाली कांठा का रास्ता करीब 1 घंटे में तय कर लिया गया। रात में ट्रेक करने का मेरे लिए यह पहला अनुभव था। जब हम शिखर पर पहुँचे तब क्षितिज पर पौ फटने का संकेत दिखाई दे रहा था। सहस्रताल, चौखंबा, कीर्तिभामक, केदारनाथ, थाले सागर, नीलकण्ठ, कामेट, हाथी पर्वत जैसे विशाल पर्वत साफ़ दिखाई दे रहे थे पर हमें नंदादेवी की दिशा का सही अनुमान नहीं हो रहा था। तभी अंधेरे से मुक्त होती एक विशाल पर्वत चोटी आकार लेती नज़र आई और मैं नंदादेवी के अविस्मरणीय दर्शन से अनुग्रहित हुआ। नंदादेवी की ऊँचाई 7816 mts है और यह भारत की सर्वोच्च पर्वत चोटी है। मेरे लिए हिमालय एक प्रेरणा है। इसके विशाल पर्वत मुझे धीरज प्रदान करते हैं जैसे कोई कह रहा हो कि, “मैं तुम्हारे साथ हमेशा अडिग रहूँगा।” ऊंची चोटियां गगन को ही क्यों ना भेद लें पर नींव धरती पर सदैव रहती है। अपने महत्व का कोई घमंड नहीं।

सूर्य अपने प्रताप से आसमान को रंग से सराबोर कर रहे थे। कुछ ही पलों में निशा की कालिमा भोर की अरुणिमा में परिवर्तित हो गई! हम प्रकृति के सौंदर्य का भरपूर आनंद ले रहे थे कि तभी सूर्य अपने सात घोड़ों पर सवार होकर प्रकट हुए और नंदादेवी पर स्वर्णिम आँचल की ओढ़नी पहना गए। मैं किसी अलौकिक अनुभूति में निःशब्द खो गया। यह ईश्वर की महिमा है या स्वयं ईश्वर!

सुबह अब अपनी पूरी ताकत के साथ पृथ्वी के हर कोने को शक्ति प्रदान कर रही थी। हम वापिस कैंप लौटने के विचार में नहीं थे क्योंकि चारों दिशाओं में पर्वतों ने हमें घेर लिया था…जैसे दोस्त साथ रहने की ज़िद्द पर अड़ जाते हैं। उत्तर दिशा में हिमालय और बाकी सब तरफ गढ़वाली पहाड़। दूर नीचे कैंप बहुत न्यारा लग रहा था पर उसे हमारा इंतज़ार करना होगा। हमारी यात्रा का यह यादग़ार समय था। दो तीन घंटे बीत गए और हमने पंवाली कांठा को अलविदा कहा। बिजौला कैंप में आज राहत थी क्यूँकि सामान बांधने की हलचल नहीं थी। यानी पूरे दिन के आलस्य का हक़ नसीब हुआ। जिन बादलों ने सूर्योदय के समय विघ्न नहीं किया अब वो लौट रहे थे। बादलों के बीच से चौखंबा यदा कदा झांक कर हमें आकर्षित कर रहा था। बस यूँ ही फ़ुर्सत में अपनी यादों को बटोरते दिन कट गया।

Bijola to Panwali Kantha. Pictures by all group members

रात के आखिरी पहर, मैं अपने टैंट से तारों के जश्न की तस्वीर ले रहा था कि करीब 5:30 बजे अचानक शुचि ने पुकारा, “विवेक! देखो, नंदादेवी यहाँ से दिखाई दे रही है!” चौखंबा से लेकर नंदादेवी तक की हिमालय पर्वतमाला का लुभावना दृश्य प्रकृति ने प्रस्तुत किया था। हमें एक नए दृष्टिकोण से फिर सूर्योदय का सौंदर्य निहारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पिछले चार दिनों के अनुभव से हम प्रकृति के कृतज्ञ हो गए। ट्रेक का सफ़र, मौसम, मनमोहक दृश्य, स्वास्थ्य… हर किसी ने हमारा साथ दिया। इसी श्रद्धा भावना सहित हमने बिजौला से नीचे उतरना शुरू किया और शाम तक घुत्तू पहुँचे।

मनुष्य अपने जीवन में अनेक अनुभवों से सीखता है पर जिज्ञासा बनी रहती है। मैं सोच में डूबा रहा कि पंवाली कांठा की यात्रा से मुझे क्या हासिल हुआ? धरती और आसमान का मनोरम संगम, हिमालय का प्रभुत्व, सूर्योदय की असीम शांति, धूप छांव की लुका छिपी, बादलों की उन्मुक्त गगन में चंचलता, ठंड में धूप का स्पर्श, स्वच्छ हवा की महक, अनगिनत तारों का नृत्य मंचन। इन सब के मेरे जीवन में क्या मायने हैं? इनसे मुझे रोज़गार की उम्मीद नहीं, मेरी मुश्किलों का हल इनके पास नहीं, मेरी तमाम ख्वाहिशों की ताबीर इनसे नहीं…फिर भी दिल यही चाहता है कि इनको अपनी मुट्ठी में बटोर कर ले चलूँ …जैसे कोई बच्चा खेल के बाद अपने खिलौने प्यार से अपने पास ही रखता है!

ए फ़लक ! तेरा यह अज़ीम तिलिस्म क्या है,
अब्र-चाँद-सूरज-सितारों का साज़ या खयाल है

सोचा देख लिया जो नज़ारा नसीब हुआ,
एक नज़र और देखूँ तो कोई नया सवाल है

इस रंग बदलती दुनिया में सुकून कहाँ,
हाँ ! तेरे हर रंग में जमाल-ओ-ख़ुमार है

किस कदर रहेगा अब शहर में विवेक,
कहेंगे लोग दीवाना है हद से पार है

10 thoughts on “Panwali Kantha

  1. Thanks to Vivek. He encouraged me and Mayuri for the trek and we experienced the Magic of Nature. What an amazing journey, its a life changing experience and specially with Vivek, we were fortunate to see the Milky Way galaxy and a number of constellations. Vivek lets plan for the next trek !!!

  2. Amazing photography & write up of your grand trip. Your pictures of Nature are a treat to watch.
    NK Bansal

  3. Dear Vivek,
    Your trek and it’s hindi description, style and the language grip is wonderful, photography is par excellence. Reading and viewing the photos gave us an experience as if we are traveling alongwith you. Hum dono mantramugdh ho gaye
    What you have experienced can not be weighed in terms of money or desires, it is life time experience. Stay blessed be happy and healthy.
    Padmini and Ashok

  4. Vivek, this is an awesome blog. I feel I am experiencing the trek myself, so beautifully captured the details about the trip. Excellent write and superb photos. I really feel missed out on a most amazing experience. Your star photographs are so wonderful. Keep going and looking forward to your next trip and blog.

  5. प्रिय विवेक,
    तुम्हारे लेख को पढ कर, सच मानो, मुझे लगा कि मैं खुद धर्ती के इस सुन्दर और निसर्ग से लिपटे हुए स्थल का स्वयम दर्शन कर रहा हूंा हमेशा की तरह बहुत ही कलात्मक और दिलचस्प रूप से पेश किया है ा
    और भी ऐसे ऑखो देखा और तजुर्बे से भरे लेखे का इन्तेज़ार रहेगा 🙏
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
    राम

  6. विवेक, तुम्हारा हर ट्रेक और उस के साथ लिखा हुआ तुम्हारा अनुभव एक सुंदर अनुभूति देता हैं। केवल पढ़ने में इतना आनंद आता हैं तो प्रत्यक्ष कृती कितनी आनंददायी होगी? मुझे बहुत ख़ुशी हैं, की तुम यह सब कर रहे हो और अपनो के साथ बाँट भी रहे हो। बढ़े चलों …..। 👍👍🙏🙏👏👏

  7. विवेक
    करीब दो साल के इंतजार के बाद तुम्हारा ये ब्लॉग देखने को मिला है, और हमेशा की तरह मन चैन और खुशी से भर गया है।
    प्रकृति की सुंदरता का ऐसा सुंदर वरणन सिर्फ विवेक ही कर सकता है। मुझे तुम्हारे आनेवाले सभी ब्लॉगों का इंतजार रहेगा।
    शिव प्रकाश

    1. विवेकजी

      हमेशा की तरह बेहतरीन वर्णन और तस्वीरें 💯 |

      रणधीर

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